हिमाचल प्रदेश सिर्फ अपनी सुंदर वादियों और शांतिपूर्ण जीवनशैली के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहाँ का पारंपरिक भोजन भी सदियों से खास पहचान बनाए हुए है। पहाड़ी जीवनशैली के अनुसार बना यह भोजन न केवल स्वास्थ्यवर्धक होता है, बल्कि इसमें हिमाचली संस्कृति और परंपराओं की झलक भी मिलती है। पुराने हिमाचल में घर-घर में बनने वाले कुछ अनोखे व्यंजनों की चर्चा आज हम करेंगे।

सिड्डू – पहाड़ी व्यंजन का राजा
सिड्डू हिमाचल का सबसे मशहूर पारंपरिक भोजन है, जिसे मुख्य रूप से गेहूं के आटे से बनाया जाता है। इसे खमीर उठाकर बनाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और पौष्टिकता दोनों बढ़ जाते हैं। सिड्डू को आमतौर पर देशी घी और सरसों की चटनी के साथ खाया जाता है, लेकिन कुछ जगह इसे दाल या आलू की सब्जी के साथ भी परोसा जाता है।

विशेषता: ठंडी जलवायु में शरीर को गर्म रखने के लिए यह आदर्श भोजन माना जाता है।
चिलड़ा – पहाड़ी पैनकेक

चिलड़ा एक तरह का पहाड़ी डोसा है, जिसे कुट्टू या मंडुआ (रागी) के आटे से बनाया जाता है। यह मुख्य रूप से रात के खाने में बनाया जाता था, क्योंकि यह हल्का होने के बावजूद काफी पोषण से भरपूर होता है। इसे ताजे मक्खन या गुड़ के साथ खाने का अलग ही मज़ा है।
विशेषता: इसे शीत ऋतु में खाने से शरीर को ताकत मिलती है और यह पाचन के लिए भी लाभदायक होता है।
पटांडे – हिमाचली मीठा स्वाद

पटांडे को हिमाचल का पारंपरिक मीठा पैनकेक कहा जा सकता है। इसे गेंहू के आटे से बनाया जाता है और इसमें गुड़ या शक्कर मिलाकर घी में सेंका जाता है। खासतौर पर सुबह के नाश्ते में इसे खाना पसंद किया जाता था।
विशेषता: यह स्वादिष्ट होने के साथ ऊर्जा से भरपूर होता है, जो पहाड़ी इलाकों में काम करने वालों के लिए आदर्श भोजन था।
भूट्टे का खिचड़ा – पहाड़ों का प्राचीन सुपरफूड
भूट्टे का खिचड़ा हिमाचल का एक पारंपरिक व्यंजन है, जिसे खासतौर पर पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्रों में खाया जाता था। इसमें मकई (भुट्टा), दाल, चावल और घी का मिश्रण होता है, जो इसे बेहद पौष्टिक बनाता है।

विशेषता: यह भोजन पेट के लिए हल्का होता है और शरीर को ठंड से बचाने के लिए कारगर होता है।
बबरू – पहाड़ी कचौरी
बबरू को हिमाचल की पारंपरिक कचौरी कहा जाता है। यह मैदा या गेहूं के आटे से बनाई जाती है और इसे विशेष रूप से चने की दाल या मीठे चटनी के साथ खाया जाता था। खासतौर पर त्योहारों और खास मौकों पर इसे बनाया जाता था।

विशेषता: इसका स्वाद और कुरकुरापन इसे एक बेहतरीन पारंपरिक स्नैक बनाता है।
आन्हणि – दही और बेसन का पारंपरिक व्यंजन

आन्हणि एक पारंपरिक व्यंजन है, जिसे पुराने समय में अधिकतर ठंडे मौसम में बनाया जाता था। इसमें खट्टे दही और बेसन का उपयोग किया जाता है, और इसे धीमी आंच पर पकाया जाता है।
विशेषता: यह पाचन के लिए लाभदायक होता है और पुराने हिमाचल के घरों में सर्दियों में यह मुख्य रूप से बनाया जाता था।
झोल – पहाड़ी दाल का अनूठा स्वाद

झोल एक पारंपरिक हिमाचली दाल है, जो धीमी आंच पर पकाई जाती है और इसमें खासतौर पर सरसों या भांग के बीजों का तड़का दिया जाता है। यह चावल के साथ खाई जाती है और हिमाचल के पुराने घरों में इसे रोज़ के भोजन में शामिल किया जाता था।
विशेषता: इसका स्वाद साधारण दालों से अलग होता है और यह पाचन के लिए भी फायदेमंद है।
माहनी और मद्रा – हिमाचली शादी-ब्याह का स्वाद

- माहनी: इमली या अमचूर से बनाई जाने वाली खट्टी-मीठी दाल।
- मद्रा: चने या राजमा को धीमी आंच पर दही और मसालों के साथ पकाकर बनाया जाता है।
इन दोनों व्यंजनों को हिमाचल में खासतौर पर शादियों, पर्वों और दावतों में बनाया जाता है।
विशेषता: इनमें खास पहाड़ी मसाले डाले जाते हैं, जिससे इनका स्वाद अलग और लाजवाब होता है।
लिंगड़ की सब्जी – पहाड़ों का अनमोल स्वाद

लिंगड़ एक पहाड़ी वनस्पति है, जिसे पहाड़ों में तोड़कर ताज़ा पकाया जाता है। इसे अक्सर आलू या टमाटर के साथ बनाया जाता है। यह हिमाचली गांवों में गर्मियों के मौसम का खास व्यंजन होता था।
विशेषता: लिंगड़ पोषण से भरपूर होता है और शरीर को प्राकृतिक विटामिन और मिनरल्स प्रदान करता है।
हिमाचली लस्सी और चा (छाछ)

पुराने हिमाचल में लोग लस्सी और चा (छाछ) को अपने दैनिक आहार का हिस्सा बनाते थे।
- लस्सी: मलाईदार दही से बनी मीठी ड्रिंक।
- चा: पहाड़ी मसालों और हींग-जीरा डालकर बनी छाछ, जो गर्मियों में शरीर को ठंडक देती है।
विशेषता: यह पाचन को सुधारने के साथ शरीर को हाइड्रेट रखने में मदद करता है।